महाकुम्भ

 

महाकुम्भ


मनात माझिया वसे, वसंत हा सदाकदा 

जाहलेचि खोड जरठ, मोहरले हृदय सदा -----1

 

मुळांस वाळवी जरी, सुवर्णपालवी वरी

मनात रत्नमाणकां, फुटेच कोवळी कळी-----2

 

जरी दिशा ओस ओस, पुष्पांचे डुलति घोस

शर्वरी करे हताश, फुले मनी तरि प्रकाश -----3

 

मनी बहर उन्मादक, क्षण क्षण हो आह्लादक

जीर्णशीर्ण देहकवच, हृदि झिरपे संजीवन -----4

 

जनन-मरण देहप्रथा , मना नसे जरा व्यथा

न जुमाने मन देहा , वेगळीच असे कथा -----5

 

संतमत कुंभातुनी, थेंब एक निसटलाच

त्यातुन कणिकाच एक, स्पर्शली मम मनास -----6

 

महाकुंभ स्नान हेच , अमृतमय होय हृदय

संतसुमन परिमळ मी,  व्यापे हे अंतरिक्ष -----7

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अरुंधतीप्रवीणदीक्षित-

माघ पौर्णिमा ( 12 फेब्रु. 2025)

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